50 रुपये की मजदूरी से कैसे खड़ा किया 15 करोड़ का करोबार-Devil Truss
हममें से ज्यादातर लोग अपने कठिन समय को अपनी किस्मत मानकर बस आंसू बहाते रहते है । और जिन्हें सफल होने का जुनून होता है उनके लिए कठिन समय एक सोने कि सीढ़ी होता है । उनके लिए कठिन समय तो एक बहुत बड़ा मौका होता है परिस्थितियों को ये दिखाने का की मैं नही झुक सकता झुकना तुझे ही पड़ेगा । कुछ ऐसी ही कहानी है एक ऐसे युवक की जिंसने सच मे परिस्थितियों को झुका दिया । ये कहानी है हरियाणा के ऐसे युवक की जिंसने शुरुआत तो 50 रुपये दिहाड़ी की नौकरी से की थी लेकिन आज वह 15 करोड़ की कम्पनी का मालिक है।
अरविंद का जन्म हरियाणा के रोहतक में हुआ था । इनके पिताजी एक सामान्य से सिविल ठेकेदार थे । इनके पिताजी की आय से घर खर्च भी मुश्किल से चल पाता था । इन्ही मुसीबतों में एक मुसीबत तो तब आयी जब इनके पिताजी के व्यवसाय में नुकसान हो गया ।
जिसके कारण इन्हे अपना घर बेचना पड़ा और ये एक कमरे के मकान में किराए से रहने लगे । घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा खराब हो चुकी थी तो अरविंद ने 2016 में मात्र 11 वर्ष की आयु में 50 रुपये में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम शुरू कर दिया ।
अब आप सोच सकते है कि 50 रुपयों में क्या होता है लेकिन इस परिवार के लिए इस परिस्थिति में 50 रुपये भी काफी मददगार साबित हुए थे । अरविंद हर परिस्थितियों में खुश रहने वाले इंसान है लेकिन अपने परिवार की दयनीय स्तिथि को देखकर वे निराश हो उठते थे । इसके बाद अरविंद ने काफी अलग अलग नौकरी की ।
परिस्थितियों से लड़ते लड़ते अरविंद में कुछ कर गुजरने की भावना प्रबल हो रही थी । अंदर की भूख बढ़ रही थी। अनेक प्रकार की नौकरी करते हुए अरविंद ने संगीत में अपनी रुचि को जगा लिया और काम से फ्री होने के बाद वे दोस्तो के डीजे पार्टियों के लिए निकल जाते । उन दिनों रोहतक में डीजे का काफी चलन था । अरविंद नर भी संगीत के कुछ गुर सीख लिए थे और उन्हें ये डीजे का काम सबसे अच्छा लगा ।
उनके संगीत सीखे गुर अब काम आए और उनके संगीत की मांग रोहतक में काफी बढ़ने लगी । लगभग एक दशक तक अरविंद रोहतक और आस पास के क्षेत्र में सबसे लोकप्रिटे डीजे बने रहे । इस कामयाबी ने अरविंद को और आगे बढ़ने की एक दिशा प्रदान की । उन्ही दिनों 2013 में रामलीला मैदान दिल्ली में एक घटना घटित हुई ।जिंसमे ढांचा गिर गया ।
अरविंद ने उसके आयोजको को एक बेहतरीन एल्युमिनियम ट्रस (Devil Truss) संरचना को उपयोग में लाने के बारे में बताया । अरविंद का कई दोस्त इवेंट मैनेजमेंट के कारोबार में इसे एक नए युग और अवसर के जैसे देखा और वे एक एल्युमिनियम के कारोबारी से मिले । जिंसने हंसते हुए बताया कि कोई भी एल्युमिनियम ले लीजिए सब चाइना से आता है और ऐसा एल्युमिनियम ट्रस भारत मे नही बन सकता है । ये बात अरविंद को चुभ गयी और उन्होंने इसे बनाने का लक्ष्य लिया और शोध में जुट गए ।
शोध में इनके 10 लाख रुपये खर्च हुए और इनका पहला एल्युमिनियम ट्रस 9 महीने बाद तैयार हुआ । तैयार होते ही अरविंद ने उसी व्यापारी को बुलाया जिंसने मना कर दिया था कि यहां इसे कोई नही बना सकता । उस व्यापारी ने सुझाव दिया की इसे दिल्ली में होने वाली एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जाना चाहिए । इसमें अरविंद के उत्पाद को काफी सराहना मिली । आज डेविल ट्रस (Devil Truss) कार्यक्रमो में ढांचा तैयार करने का काम करती है । 2019 में डेविल ट्रस को सर्वश्रेष्ठ ट्रेसिंग कम्पनी का पुरुस्कार मिला है ।
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